अनमोल पचौरी ब्यूरो चीफ आर्यभट मीडिया
03-03-2022
जब से यूक्रेन पर रूस ने हमला किया है तब से पूरी दुनिया का ध्यान इस और है कि
रूस के किए इस आक्रमण में कौन सा देश किस तरफ जाता है? पहले यह बात तो साफ हो गई थी कि अमेरिका के उकसावे में आकर यूक्रेन बहुत बड़ी गलती कर बैठा है, दूसरे देशों ने इस गलती से सबक लिया और जो भी देश अमेरिका के दम पर रूस और चीन जैसे देशों को आंखें दिखाते हैं उन्होंने भी यह सबक सीख लिया कि किसी भी राष्ट्र को अपनी रक्षा स्वयं ही करनी पड़ती है.
किसी भी राष्ट्र के राष्ट्रीय प्रतिनिधि का दूर दृष्टि वाला होना अति महत्वपूर्ण है! हवाएं किस ओर बह रही हैं इस चीज को भाँप लेने वाला एक कुशल शासक होता है. यूक्रेन और भारत की इस लड़ाई में भारत शुरू से ही न्यूट्रल भूमिका मैं रहा है भारत का कहना है कि वह शांति के पक्ष में है ना तो वे युक्रेन के साथ है और ना ही रूस के, लेकिन पश्चिमी देश भारत के इस रविय्ये को रूस के साथ होना मान रहे हैं कि भारत यदि रूस की निंदा नहीं कर रहा है तो वह रूस के साथ ही है.
इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में कोई भी चीज बहुत मायने रखती है मुंह से निकला हुआ एक शब्द किसी भी देश की सदियां सुधार भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है राष्ट्रीय प्रतिनिधियों को अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिक्स में एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ता है.
इसीलिए भविष्य के खतरे को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने भारत के सेना के उच्च अधिकारियों तथा विदेश नीति के एक्सपर्ट की एक आपातकालीन मीटिंग बुलाई और मीटिंग में इस बात की चर्चा की गई कि यदि चीन कल को भारत के ऊपर हमला कर दें तो भारत किस तरीके से अपना बचाव करेगा?
क्या यूक्रेन के साथ ना देने पर भविष्य में नाटो और पश्चिमी देश भारत का भी साथ नहीं देंगे? क्योंकि रूस और चीन की दोस्ती पक्की है, तो लिहाजा रूस तो चीन के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाएगा नहीं. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए अब भारत अपनी विदेश नीतियों पर विचार कर रहा है और राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए नई नीतियों पर विचार किया जा रहा है.